Thursday 9 February 2012

दहेज:बिकता नर

 दहेज:बिकता नर

कृति -मोहित पाण्डेय"ओम "             



इस दहेज रुपी दानव ने,
बेटी का जीवन छीन लिया|
इसी दहेज के दानव ने,
मानव मूल्यों का अवकलन किया|

नाग-पाश में फसकर,
तुम मानवता से गिर जाते हो|
मै मानव हू भूल कर यह,
पशुओं की भाति बिक जाते हो|

भृष्ट समाज में अंधे होकर,
विविध आन्दोलन करवाते हो|
खुद की संतान के बैरी बनकर,
धर्म और राष्ट्र भक्ति का पाठ पढाते हो|

विविध प्रपंचं करके खुद,
महापुरुष कहलाते हो|
उस अबोध को तो बचा न सके,
युग परिवर्तन की बात चलाते हो|

नस के पानी को खून समझकर,
बदलाओं की झूठी हवा उड़ाते हो|

अगर अभी रगों में खून,
और मस्तक पर तेज बाकी है|
आओ साथ खड़े हो मेरे,
मन में ऐसा संकल्प करो|

माँ की प्यारी बेटी का डर,
दहेज का दानव खत्म करो|
खुद परित्याग दहेज का कर,
बेटी के सपनो में रंगों को भरो||

1 comment:

  1. कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !

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